एक चुनावी सर्वे में जब भाजपा को लगभग 260 सीटों के साथ सत्ता में वापसी करने का अनुमान लगाया गया तो इस पर शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ हो। इसका सबसे बड़ा कारण यही माना जाता है कि एक तरफ तो भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने कामकाज से अपना एक बड़ा समर्थक वर्ग तैयार किया है, तो दूसरी तरफ विपक्ष की धार कुंद पड़ी हुई है। विपक्ष की प्रभावी भूमिका के अभाव में 2022 का चुनावी समर एकतरफा होता दिख रहा था, लेकिन रविवार को मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत ने प्रदेश के सियासी माहौल में एक नए समीकरण की उम्मीद पैदा कर दी है। लगभग पांच लाख किसानों की इस महापंचायत ने किसान नेताओं के चेहरों पर ही नहीं, विपक्ष के चेहरे पर भी मुस्कान लौटा दी है।
संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख नेता अविक साहा ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा की सबसे बड़ी ताकत जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने की रही है। लेकिन मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत से हमने सबसे बड़ा संदेश यही दिया है कि किसानों के लिए ‘किसानी’ के अलावा कोई दूसरी जाति या धर्म नहीं होती। वे केवल किसानी धर्म को ध्यान में रखते हुए अपने लाभ-नुकसान को ध्यान में रखते हुए वोट करेंगे। अगले दो-तीन महीने यूपी के हर गांव, ब्लॉक और जिले के स्तर पर जनसभाएं कर वे किसानों को उनके इसी किसानी धर्म को याद रखते हुए विधानसभा चुनाव में वोट करने की अपील करेंगे।
जानकारों के अनुसार किसानों का यह विरोध भाजपा को पश्चिमी यूपी में कम से कम 100 सीटों पर सीधा नुकसान पहुंचा सकता है, जबकि पूर्वांचल और अन्य क्षेत्रों में भी इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है।
अविक साहा ने कहा कि इस किसान महापंचायत के दीर्घकालिक संदेश भी निकले हैं जो इस चुनाव से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसमें उत्तर प्रदेश के हर गांव, ब्लॉक और जिले स्तर तक किसानों का एक बड़ा जमीनी संगठन तैयार करना शामिल है, जो बाद में भी समय-समय पर किसानों के मुद्दों के लिए संघर्ष करते रहेंगे। महाराष्ट्र-गुजरात में किसान संगठन न केवल ज्यादा संगठित हैं, बल्कि ज्यादा प्रभावी भी हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसका प्रभाव अपेक्षाकृत सीमित रहा है।